एक बगत हो जद घर मांय रात नै
सूवण सूं पैली टाबरां नै दादी-नानी कहाणियां सुणायां करती, ठेठ गांवां तो
बात म्हैं करूं कोनी, पण कस्बां अर सहरां मांय तो दादी-नानी खुद टाबरां
भेळै सीरियल देखै का रात नै पोढण री करी । न्यारै-न्यारै चैनलां माथै
परोसीजण वाळा सीरियल मांय कुण कित्तो सीरियस है आ कैवण री दरकार कोनी ।
टाबर घर सूं स्कूल, अर स्कूल सूं पाछो घरै काम रो भारो लियां आवै । आपरी
पढाई-लिखाई अर खेला-कूदी रै सागै बुद्धु बगसै रो कोड बींनै सांस ई कोनी
लेवण देवै कै बो बाल साहित्य रै आंगणै ढूकै । अबै करां बात माइतां री, तो
बां नै टाबरां खातर बाल साहित्य बाबत सोचण री फुरसत कठै ? जिका
स्यांणा-समझणा है बां वास्तै बाल साहित्य मिलण री ठौड़ कठै ? बाल साहित्य
पेटै केई केई अबखायां है । बाल साहित्य लेखकां खातर कोई प्रकासक कोनी अर
प्रकासक नीं हुवण रो कारण कैयो जावै कै बजार कोनी ।
कांई बाल साहित्य लेखक री आ जिम्मेदारी है कै बो बजार री मांग बाबत
सोचै ? बजार नै लेखक पैली जाणै, पिछणै अर परखै, पछै उण मुजब लिखै ? असल
मांय ओ संभव कोनी । कोई लेखक बजार री मांग नै तो बिसरा सकै, पण बगत री मांग
तो उण नै परोटणी ई पड़ैला । कांई आज आपां रा बाल साहित्य लिखणिया लेखक बगत
री मांग मुजब लिखण री खेचळ कर रैया है ? साच तो ओ है कै हाल तांई इण
इक्कीसवीं सदी मांय ई बाल साहित्य लेखक चांद, सूरज, राजा, राणी, दरखत,
कुत्ता, बिल्ली, ऊंट, बांदरां-बांदरी, खेल-तमासा रा गीत ई गावै अर टाबरां
नै साव भोळा मानै । गद्य साहित्य री बात करां तो कांई आपां बाल साहित्य रै
नांव माथै हाल तांई जूनी लोक कथावां री पुरसगारी सूं खुद नै मुगत नीं कर
सकां ? जूनै साहित्य रो नुंवै साहित्य मांय सिरजाणाऊ प्रयोग हुवणो चाइजै ।
सिरजण मांय रचनाकार आप रै बगत नै सागै लेय’र चालै । बगत नै हरेक
रचनाकार आप-आपरै हिसाब सूं परखै, पिछाणै अर परोटै । बगत रो सागो छोड़ियां
पार नीं पड़ै क्यूं कै बगत री केई-केई बातां किणी पण रचना मांय रळीयोड़ी
रैवै । रचनाकार बगत रो सागो कर’र चालै तद ई बो बगत सूं मेळ करतो थको आधुनिक
सूं आधुनिक हुवै, अर दूजै सबदां मांय कैवां तो ओ ई किणी पण परंपरा रो
विकास हुया करै । रचना री पैली अर छेहली कसौटी जुगबोध नै मान सकां ।
आपां जाणां हरेक बगत रो आपूआप रो जुगबोध हुया करै अर जुगबोध री सीवां ई
हरेक जुग रै हरेक बंधेज सूं रळियोड़ी रैवै । जुगबोध मांय बगत रा आरथिक,
सामाजिक, सांस्कृतिक, धारमिक, राजनैतिक आद केई केई दीठाव आपां एकठ देख अर
विचार सकां । रचना मांय विसय भेळै आपां नै किणी खास जुगबोध रा दरसण ई हुया
करै । बगत रै बदळियां जुगबोध ई बदळीजै अर ओ ई करण है कै किणी पण परंपरा री
रचनावां मांय बगत बगत माथै आपां नै बदळाव दीसै । एक ओळी मांय कैवां तो बगत
री खासियतां सूं रचना रो मेळ-मिळाप ही जुगबोध हुया करै । रचना रो विसय बगत
रै हिसाब सूं बदळियां ई सरै, काल बाल साहित्य सिरजण पेटै रचनावां रै नांव
माथै लोक कथावां सूं धाको धिकायो पण आज तो विग्यान अर कम्प्यूटर रै जुग
मांय केई केई नुवां विसय आपां सामीं आय ऊभग्या है । टाबर अबै कम्प्यूटर,
वीडियो गेम अर कार्टून नेटवर्क रो सोखीन है ।
हरेक नै आप री परंपरा माथै गुमेज हुवणो लाजमी है अर आपां री लोक
साहित्य री परंपरा तो सिरै परंपरा है ई, कथाकार कमल रंगा रै सबदां
मांय- “आपां रै लोक साहित्य में बाल साहित्य रो लूंठो भंडार है, जिण में
बालकथावां, बालगीत, आड्यां, अखाणां अर लोरियां आद री लूंठी धरोहर है
।”(जागती जोत, नवम्बर, 2002 ; पेज : 34) टाबरां खातर जिकी दादी-नानी री
काहाणियां ही बै बाल साहित्य पेटै गिणा सकां । बाल साहित्य री पैली रचना
पेटै बात करां तो बरस 1623 मांय “गोरा बादल”कवि जटमल री रचना नै बाल
साहित्य री पैली रचना मानण रा दाखला मिलै ।
जूनै साहित्य पछै आधुनिक काल री बात करां तो सूर्यमल मिश्रण री
पोथी “राम रंजाट” नै पैली बाल साहित्य री पोथी मानण री बात माथै कवि शिवराज
भारतीय री बात सूं सहमत हुयो जाय सकै-“आपां जद बाल साहित्य री बात करां तो
बठै बालकां री मानसिकता नै ध्यान में राख’र वां रै मनोरंजन अर विकास सारू
लिख्यै साहित्य नै ही बाल साहित्य मानां । इण दीठ सूं रामरंजाट नै बाल
साहित्य रै खांचै में खींचणो जचै कोनी ।” आ बात मानता थकां ई कहाणीकार
मुरलीधर व्यास ‘राजस्थानी’ रै कहाणी संग्रै “बरसगांठ” बाबत शिवराज भारतीय
री आ टीप देखणजोग है- “मुरलीधर व्यास ‘बरसगांठ’में सांतरी कहाण्यां टाबरां
साम्हीं राखी ।” ( राजस्थली : अंक-100 ; पेज- 70) अर इणी ढाळै ई बाल
साहित्य लेखका दीनदयाल शर्मा रो ई मानणो है- “मुरलीधर व्यास ने बच्चों के
लिए ‘बरसगांठ’ जैसी सशक्त बाल कथा कृति के अलावा अनेक हास्य रेखाचित्र भी
लिखे हैं ।” ( राजस्थानी बाल साहित्य : एक दृष्टि ; पेज : 6)
कहाणीकार मुरलीधर व्यास दांई आपरै आलेखां मांय कवि कन्हैयालाल सेठिया,
चंद्रसिंह बिरकाळी अर मोहन आलोक आद नै ई बाल साहित्य लेखक साबित करण री आं
कोसिस करी है । पैली बात तो आपां जाणां कै कोई रचना बाल-साहित्य री हुवै,
उण खातर रचना मांय कांई कांई हुवणो जरूरी हुवै ? रंग-रूप री बात करां तो
कमती पानां री पोथी अर मोटा मोटा आखरां मांय छपी पोथी बाल साहित्य री हुया
करै, पण रचना मांय कीं दूजी जरूरी मांयली बातां बाबत ई आपां नै नीं विचारणो
चाइजै ?
कांई छोटी ऊमर मांय कोई लेखक रचना लिखै, उण नै ऊमर रै हिसाब सूं बाल
साहित्यकार मानता थका उण री रचनावां नै बाल साहित्य मान लेवां ? आ मजाक हुय
रैयी है । इणी खतर म्हैं ओ सवाल उठायो कै बाल साहित्य लेखन री रचना-विधि
कांई हुवै, बाल साहित्य री रचना मांय बै किसी जरूरी बातां है जिसी हुया सूं
ई कोई पण रचना बाल साहित्य री कैयी जावै अर जिण सूं ओ फैसलो पण करियो जावै
कै आ रचना बाल साहित्य री है या कोनी ।
रचना रा बै आधार घटक अर मानकां री जाणकारी हुयां ई आपां ओ फैसलो कर
सकालां । आपां बाल साहित्य लेखन री परंपरा नै सिमरध करण खातर नामी
लेखक-कवियां नै जोड़ा जिकी बात तो ठीक है पण आं लेखकां नै बाल साहित्य लेखक
मानण री भूल इण खातर नीं करणी चाइजै कै आं री सिरजण जातरा बाल साहित्य
लेखन सूं साव जुदा रैयी है । जे इण ढाळै री सगळी रचनावां नै ई बाल साहित्य
री पद्य रचनावां मांय सामिल करणी चावां तो आपां नै “माणक” जुलाई-अगस्त,
2001 अंक देखणो चाइजै, जिको इणी ढाळै री रचवां माथै केंद्रीत है । अठै बाल
साहित्य री सिमरध परंपरा अर बाल साहित्य री पैली पोथी बाबत शोध-खोज री
जरूरत है ।
आजादी पछै रै बाल साहित्य लेखकां री विगतवार बात करां तो लगोलग लागै
कै दो-च्यार लेखकां नै टाळ देवां तो कोई बाल साहित्य नै आज तांई गंभीरता
सूं लियो ई कोनी । बाल साहित्य मतलब कोई सरल-सी चीज मानण री बाण बैठगी ।
गिणती रा बाल साहित्यकार है अर बां मांय सूं फगत बाल साहित्यकार रो तुगमो
लियां तो दो-च्यार लेखक ई निगै आवै । पोथ्यां री बात करां तो बाल साहित्य
री च्यार-पांच पोथ्यां लिखणवाळा कित्ता लेखक है ? आज तांई लिखीज्यै बाल
साहित्य मांय जद विधावार फंटवाड़ो कर’र, पोथ्यां अर लेखकां बाबत कीं ठाह
करां तो आपां नै आ संकड़ाई कीं बेसी लखावै । बाल कवितावां, बाल कथावां अर
बाल नाटकां माथै तो काम हुयो है पण बाल साहित्य री केई केई विधावां तो हाल
तांई अछूती पड़ी है, जिंयां- चित्र-कथावां, विज्ञान कथावां, निबंध, रेडियो
नाटक आद ।
बाल साहित्य पेटै राणी राणी लक्ष्मीकुमारी चूड़ावत, मनोहर शर्मा,
नानूराम संस्कर्ता, विजयदान देथा, गोविंद अग्रवाल, सूर्यशंकर पारीक,
मूलचंद ‘प्राणेश’, करणीदान बारहठ, लक्ष्मीनारायण रंगा, जुगल परिहार आद रो
काम ई घणो महतावूं कैयो जावैला । ऐ लेखक जूनी लोक कथावां नै सबदां मांय
ढाळण रो लूंठो काम करियो, सागै-सागै आं मांय सूं केई लेखकां रो मौलिक लेखन ई
सामीं आयो है । लोक साहित्य रा अमर साधकां जूनी लोककथावां नै सबदां रा
बागा पैरावण रो काम करियो, जिण मांय केई केई लोककथावां री प्रस्तुति नै
आपां बालकथा साहित्य मान सकां । इण ढाळै रै सगळै काम री सांतरी
अंवेर “माणक” नवम्बर, 2001 अंक मांय हुई है । माणक रै इण अंक री एक जरूरी
खासियत आ है कै लोककथावां रै सिरजणहारां रै नांवां आगै “प्रस्तुति” लिख’र
संपादक आपरी सूझ-बूझ नै प्रगट करी है, इण खातर माणक नै बधाई देवणी चाइजै ।
लोककथावां अर पद्यकथावां सूं आगै आज आपां नै बाल साहित्य नै लेय जावण री
जरूरत है ।
डॉ संतोष परिहार ‘शानू’ री बालकथा “पिंकी री कहाणी” रो दाखलो
लेवां- “नानी, एक कहाणी सुणा दै नीं ! देख, नीं तौ म्हैं फेरूं नानणै
आवूंला कोनी !” पिंकी गरमी री छुट्टियां में नानाणै आयोड़ी ही, नै अबै
जिद्द कर री ही ।’ लेखिका इण में आगै नानी सूं कहाणी चालू करावै-“काछवौ तौ
लारै रैयग्यौ…।”पण बिचाळै ई पिंकी री आ बात सगळा बाल साहित्य लेखकां खातर
म्हनै ठीक लखावै- “नीं-नीं, आ कहाणी कोनी सुणनी ! कोई नवी कहाणी सुणा नीं,
नानी !” इण बाल कथा मांय सहर में रैवण वाळी पिंकी खुद नानी नै एक कहाणी
सुणावै । कहाणी मांय पूसी कैट है, फ्रीज है, ऊंदरा री मस्ती है अर छेकड़
मांय सीख है- लालच नीं करण री…। एक ओळी इणी कहाणी सूं देखो- “उठीनै ऊंदरौ
आपरै दोस्त नै मोबाइल माथै एसएमएस भेज रैयौ हौ कै- खतरौ टळग्यौ है, घंटी
बांधवां री जरूरत कोनी !” आपरी एक बीजी बालकथा मांय टाबर नै “मूरख
चिड़ौ” रै मारफत भरौसै री सीख तो दीवी है पण उण टाबर माथै भरौसो कर नै ।
लेखकां नै जाण लेवणो चाइजै कै बाल साहित्य रो मतलब फगत टाबरा नै सीख
सीखावणी ई कोनी हुया करै । पंचतंत्र अर हितोपदेश रो आपरो टैम हो अर
लोककथावां जिकै नै बांचणी है बो बांच लेसी पण आज बगत नै देखता थकां आपां नै
बगत अर जुगबोध नै समझणो पड़ैला ।
बरस 1978 अंतर्राष्ट्रीय बाल बरस रै रूप में मनाइज्यो अर टाबर-टोळी
खातर कीं काम अठै सूं गति पकड़ै । इणी बरस मनोहर शर्मा
नै “बालवाड़ी” पांडुलिपि खातर राजस्थान साहित्य अकादेमी, उदयपुर सूं
पुरस्कार मिलणो एक सुभ संकेत हो । लोक कथावां का जीव-जिनावरां री कथावां ई
फगत बाल साहित्य कोनी आ सीख राजस्थानी मांय पुखता करण पेटै एक संपादक लेखक
रो नांव इतिहास घणै आदर सागै लेवैला अर बो नांव है- कथाकार
बी.एल.माली ‘अशांत’ रो । बै अर बांरा साथी साहित्यकार भानसिंह शेखावत बाल
साहित्य पेटै घणो घणो काम करियो जिण री अंवेर हुवणी चाइजै । आप बाल साहित्य
रै विगसाव खातर बाल साहित्य प्रकाशन ट्रस्ट सूं बाल साहित्य री
पत्रिका– “झुंणझुणियो” बरस 1978 लगैटगै 13 बरसां तांई निकाळी ।
आजादी पछै बाल साहित्य पेटै कीं गिणावजोग काम करण वाळा मांय सिरै नांव
कथाकार भंवरलाल ‘भ्रमर’ रो ई मानीजैला, क्यूं कै बां आपरै
बाल-उपन्यास “भोर रा पगलिया” रै मारफत खरै अरथां मांय बालसाहित्य मांय
कूं-कूं पगलियां मांडिया । अठै आपां नै पैली बार जुगबोध अर विसयगत बदळाव रो
एक दीठाव देखण नै मिलै । ओ बो बगत हो जद लेखक चौबोली राणी री कथा का नानी
रै घरै जावैतै झिंडियै री कथा लिखण मांय आपरी पूरी ताकत लगा रैया हा ।
बालसाहित्य रै नांव माथै इण जूनी पुरसगारी बिच्चै भ्रमरजी स्कूली जीवण सूं
जुड़ियो एक मनोवैग्यानिक उपन्यास लिख’र घणो महतावूं काम करियो । आगै इणी
ढाळै रै विसय नै उठावतां थकां व्यंग्यकार बुलाकी शर्मा ई एक उपन्यास “साच
नै आंच” नांव सूं लिख्यो । आं दोनूं बाल उपन्यासां मांय नुवीं घड़त सागै
जुगबोध री सहजता, सरलता घणी असरदार दीसै । आं दोनूं लेखकां री खिमता है कै
बै कथा मांय सीख सीखावण खातर किणी ढाळै री कोई अटकळ कोनी बरती ।
बरस 1980 सूं 1990 तांई री रचनावां मांय जुगबोध अर विसयगत बदळाव री
दीठ सूं बी एल माली ‘अशांत’ अर भानसिंह शेखावत खासो काम करियो । आपरी केई
पोथ्यां अर रचनावां मांय बगत री मांग नै स्वीकारतां थकां सांतरां आखर
मिल्या । लगैटगै बाल साहित्य री सगळी विधावां सागै अनुवाद रै मारफत ई आं
बालसाहित्य रै भंडार नै भरण री कोसीस करी । बाल साहित्य प्रकाशन ट्रस्ट सूं
ई बरस 1984 मांय कथाकार बुलाकी शर्मा रै संपादन मांय “अचपळो चिड़ो” नांव
सूं बालकथावां रो संग्रै ई छप्यो । राजस्थानी पांच बाल कवि ( मोहन आलोक,
मनोहरलाल गोयल, जयंत निर्वाण, नानूराम संस्कर्ता, बस्तीमल सोलंकी) आद
प्रकासनां मांय आं लेखकां रो समरपण भाव प्रगटै । भारतीय अर बीजी भारतीय
साहित्य री रचनावां री जाणकारी सूं राजस्थानी लेखकां मांय कांई लिखणो है कै
जिको बगत मुजब भारतीय साहित्य रै नांव माथै आपां री सीर मानीजैला आ
समझदारी आवती इण दौर रै लेखकां मांय देखी जाय सकै ।
लोककथावां मांय एक नुवीं दीठ रो बरताव केई लेखकां करियो, दाखलै रूप
कवि लक्ष्मीनारायण रंगा री बालकथावां री पोथी “हरिया सुवटिया” नै लेवां जिण
बाबत कथाकार कमल रंगा री टीप है- “इण पोथी में राजस्थानी बाल लोककथावां नै
एक नुवै शिल्प में लेखक ढाळै तो अठै नुंवी दीठ नै आधुनिकता बोध देवण रो
काम हुयो ।” (जागती जोत, नवम्बर, 2002 ; पेज : 34) दुलाराम सारण री
बालकथा“राजा री सूझ” मांय लोककथात्मक बुणगट मांय बात नै जिण ढाळै राखण री
लेखकीय चतराई मिलै जिण सूं छेकड़ तांई कथा मांय उमाव बण्यो रैवै । घणीखरी
बालकथावां मांय कथा थोड़ी’क चालू हुवतां ई अंत ठाह लाग जावै कै आगै कांई
हुवैला जिंयां खुद दुलाराम री बालकथा “नकल रौ नतीजौ” नै लेवां या मदनगोपाल
लढ़ा ई “धुंवै रा गोट”, नांव सूं ई ठाह लागै कै कथा कांई हुवैला इण सूं
जुदा “राजा री सूझ”कथा मांय छेहली ओळी तांई भेद कोनी खुलै । जूनै साहित्य
मांय सूं रामायण रै प्रसंग नै उठावतां थका विष्णु भट्ट री
बालकथा “शिष्टाचार री सीख” मांय घणी रोचकता रंजकता देखी जाय सकै ।
बरस 1983 मांय राजस्थानी भाषा, साहित्य अर सस्कृति अकादमी थापित हुया
पछै बालसाहित्य री केई-केई पोथ्यां सामीं आई । बालसाहित्य रै विगसाव पेटै
अकादेमी कानीं सूं बाल साहित्य पुरस्कार बरस थापित हुयां पछै केई लेखक बाल
साहित्य लेखक रूप थापित हुया, पण बी. एल.माली ‘अशांत’, भानसिंह शेखावत अर
भंवरलाल ‘भ्रमर’ आद रो नांव बाल साहित्य नै राजस्थानी मांय थापित करणवाळा
भेळै हरावळ लियो जावैला ।
बाल साहित्य केई जूनै लेखकां मांय जिंयां जयंत निर्वाण, मोहन मंडेला,
रामनिरंजन ठिमाऊ आद मांय जुगबोध अर विसयगत बदळाव री केई सींवां निजर आवै ।
टाबरां नै सीख सीखावणो ई आं रो मकसद रैयो । नुवीं दीठ रो विगसाव
ए. वी. कमल, मनोहर सिंह राठौड़, नवनीत पाण्डे, रवि पुरोहित, मदनगोपाल लढ़ा,
शिवराज भारतीय, मनोजकुमार स्वामी, राजूराम बिजारणियां, दुलाराम सारण,
श्रीभगवान सैनी आद लेखकां मांय देख्यो जाय सकै ।
जुगबोध अर विसयगत बदळाव री बात लेखक-दीठ बात करां तो आपां नै एक नांव
चेतै आवै दीनदयाल शर्मा रो, जिका आपरी पुखता ओळखण बाणाई है । बां इण दिस
लगोलग लेखन करियो-चन्दर री चतराई (1992), टाबर टोळी (1994), शंखेसर रा सींग
(1998), तूं कांईं बणसी (1999), म्हारा गुरुजी (1999), बात रा दाम (2003)
अर बाळपणै री बातां (2009) आद पोथ्यां लगैटगै बीस बरसां री लेखन-जातरा है
जिकी भरोसो बंधावै कै आप पक्का बाल साहित्यकार है । आं रै लेखन सूं परखत
लाखावै कै आपरै घरै अर स्कूल मांय आप टाबरां भेळै रम्योड़ा ई रैवै ।
संस्मरण लेखन पेटै“बाळपणै री बातां” पोथी आज तांई छपी सगळी पोथ्यां सूं फगत
वजन मांय ई भारी कोनी, जुगबोध अर विसगत बदळाव खातर ई आ पोथी घणी घणी
महतावू मानी जावैला । बाल साहित्य लेखन खातर बालक जैड़ो भोळो मन चाइजै अर
बो दीनदयाल जी पाखती है । भोळप इत्ती है कै “बाळपणै री बातां” पोथी री
भूमिका “मन री बात” नै इत्ती लम्बी मांडी है कै भूमिका खुद पोथी दांई है ।
घर रै टाबरां मांय एक लेखक रो रमणो “बाळपणै री बातां” मांय सांगोपांग
उजागर हुवै । आं रै घर-परिवार रै मिस इण पोथी मांय आपां बदळतै जुग रा
केई-केई दीठाव देख सकां । “चंदन री चतराई”(1992) पोथी री पैली कहाणी “साचै
री जीत” री जिकी भैंस ही बा दूसर “बाळपणै री बातां” (2009) मांय “गा” बण’र
आयगी । एक सागण बात नै लेखक कीं नेठाव मांड’र पाछी कैवै । बाल नाटकां मांय
दीनदयाल शर्मा अर मनोज कुमार स्वामी घणी सावचेती सूं कम सूं कम साज-सज्जा
बरतता थकां आधुनिक नातक लिख्या । दीनदयाल शर्मा रो “म्हारा गुरुजी” आपरै
व्यंग्य रै कारण, “बात रा दाम”चतराई री बात अर “तूं कांईं बणसी” आपरी सीख
रै कारण उल्लेखजोग मान्या जावैला । “बावळी बस्ती” जैड़ा हास्य एकांकी टाबर
घणा दाय करै पण बाल साहित्य मांय हास्य रचनावां घणी कोनी लिखीजी ।
बाल साहित्य री पद्य रचनावां री बात करां तो छंद तय ताल वाळी रचनावां
घणी असरदार हुय सकै जद कै नुंवी कवितावां जैड़ी छंद मुगत कवितावां मांय बा
बात बणै कोनी बणै, जद कै बाल कवितावां रै नांव माथै देस, घर-परिवार,
जीव-जिनावरां, जीवण-मोल अर सीख-संस्कारां नै केवटण वाळी कवितावां कवियां
घणी लिखी है । जे बालकवितावां मांय जुगबोध अर विसयगत री बात करां तो रुपियै
मांय बारा आना रचनावां तो पूरी छोड़ ई देवां, कारण कै बां मांय बदळाव देखण
नै साव कमती मिलै ।
सगळा बाल कवियां आ मान’र लिखै कै टाबर नै सीख देवणी है- बात करां तो
देवी-देवतावां री करलां, सरसत माता री करला- “सुरसत माता सिंवरूम थांनै /
ग्यान ऊजाळो दे-दे म्हांनै ।” ( छांटड़ली / किशोरकुमार निर्वाण ; पेज-9)
केई कवि गणेसजी री धावना करसी तो आपां रा बाकी रा देवी देवता अर दूजै धरमां
री सीख सीखावतां पैली तो उण टाबर नै धरम मांय जकड़ देवालां, आप नै चाइजै
कै उण नै हिंदू अर मुसळमान कै सिख-इसाई उण नै कम सूं कम आपां रो बाल
साहित्य तो ना बणावै । ओ काम तो समाज हाफी कर देसी । टाबर खातर तो मा सूं
मोटो भगवान कुण है ? “लाड-कोड रो समदर मां / मो, ममता रो मिंदर मां /
चोखी-चोखी बात सुणावै । लोरी गा’र सुआवै मां ।“ शिवराज भरतीय री आ बात तो
फेर ई समझ में आवै पण “मोर बैठती माता शारदा / थांकै तंबूरो हाथ में /
ज्ञान, ध्यान अर भक्ति दीज्ये / रीज्ये मावड़ साथ में …। कांई कवि किशनलाल
गावरी री इण ओळियां मांय छोटा-छोटा हाथां अर छोटै मूंडै घणी मोटी बात नीं
मांग रैयो है- इत्तो ज्ञान, ध्यान अर भक्ति टाबर नै अबार ई मिल जावैला तो
बो राखैला कठै ? बो तंबूरै कानी फगत अचरज सूं देख ही सकै, उण री माया अर
सुर समझण री उण री उमर कठै ? इणी ढालै कवि रामनिरजंन ठिमाऊ री ओळियां
है- “एक ही टाबर सैं सूं आछ्यो / ओ होवै परवार नियोजन / ज्यादा टाबर चोखा
कोनी / मिलै न बां नै पूरो भोजन ।” म्हैं माफी चावूं ठिमाऊ जी री आ कविता
तो किणी स्लोगन दांई है अर टाबरां खातर तो नीं पण नुंवै परणियै घणी-लुगाई
खातर बेसी है ।
बाल कवितावां मांय राजस्थान अर धरती रो बखाण, जीव-जिनावरां, बदळती
रुतां भेळै प्रक्रति बाबत कवितावां बेसी लिखीजी है । अठै केई कवियां तो लोक
साहित्य नै ई परोटातां थकां कोई नुवीं बात नीं लिख परा बै सागण जूनी बातां
न्यारै-न्यारै सबदां मांय लिखै, दाखलै सारू मईनुदीन कोहरी री बाल कविता
पोथी “मोत्यां सूं मैं’गी” री ओळियां लेवां- “ म्हारा काळा कागलिता रे, /
तूं कांई संदेशो लायो रे । / कांव-कांव तूं घणो करै, / डरूं-फरूं तूं घणो
डरै । च्यारूं दिशावां तूं उड़ै फिरै, / गांव गोठ री तूं खबर करै ।”
कवितावां मांय टाबर जीव, जानवर अर जंगळ नै घणो दाय करै तो अब्दुल समद
राही लिखै-“बांदर मामो चसमौ लेनै / बांचै है अखबार, / उण में पढ़ियौ जंगळ
में ई / खासौ बढगौ खार ।” तो बात कीं ओपती लागै पण खासौ
खार “बढै” कोनी “बधै” लिखण री जरूरत ई समझणी पड़ैला । “खासौ बधग्यौ
खार” हुवणो चाइजै । बाल साहित्य मांय सबदां रै बरताव पेटै खास ध्यान देवण
री जरूरत है ।“लाडेसर” पोथी रा कवि नवनीत पाण्डे री कविता री ऐ ओळियां
देखो, जिण सूं ठा पड़ै कै ओ जुग टाबर नै कित्तो समझवान बणा दियो
है –“मास्टर जी क्यूं डण्डा मारो / कांई तो सोचो, कीं तो विचारो / सांची
बोलो- ईंयां ई मरता / जे म्हैं होंवतो बेटो थारो । ” कवि रवि पुरोहित री
पोथी “तिरंगो” मांय कीड़ी कविता है जिकी सीखो, सीखो, सीखो इण सूं सीखो सीख
रो पाठ पढावै पण कवि कृष्णकुमार बान्दर री “अड़ीपा”पोथी- झगड़ बिलोवणो खाटी
छा’ रै मारफत कैयो जाय सकै कै बाल कवितावां मांय केई कवितावां नुंवै
जुगबोध नै पोखण वाळी अर विसयगत बदळाव लिया घणी सरावणजोग कवितावां ई लिखीजी
है-“साधन आया बीसियां / ऊपर-थळी जनेती / लाडू-बूंदी जूंठी छोड़ै / घरां
रोटियां छेती / दूसर-तीसर बड़ै टैंट में / खा-खा लेवै मजा / अड़ीपा हा’ हा;
हा; / अड़ीपा हा’ ! / फोटू आळो पळका मारै / मूवी आळो सागै / बाजो बाजै
गांम ऊपर कर / कार बनै री आगै / नाचै लुगडर भोत सूगला / सरम गेरी दी सा’ /
अड़ीपा हा’ हा; हा; / अड़ीपा हा’ !” टाबरां री बाल कविता तो अरथ सीख सूं
बेसी मनोरंजन अर खेल-तमासा है । किणी पण साहित्य मांय सीधी सीधी सीख नीं
हुया करै जिकै मांय बाल साहित्य मांय तो घणी घणी सावचेती री दरकार हुया करै
। जिकी बाल कवितावां मांय कीं लय, सुर, ताल, संगीत भेळै जे टाबर मुळकै,
गावै, हांसै तो उण री सारथकता समझी जावैला । कृष्णकुमार बान्दर कवि जी री
एक कविता भळै देखो- “बोल्यो मुरगलो- कुकडूं-कू / तन्नै जगावण आयो हूं /” इण
सूं आगै री ओळियां है- “उठ कमेड़ी सूती क्यूं / कुकड़ूं-कूं – कुकड़ूं-कूं
/ चिड़ी-कागला सगळा जाग्या / देख मोरिया न्हागे आग्या / बेगी काम लागज्या
तूं / कुकड़ूं-कूं – कुकड़ूं-कूं ।” इण ढाळै आ कविता आगै चालै अर इण मिस
आपां कह सकां कै बाल साहित्य मांय विकास री घणी-घणी संभावनावां है ।
साहित्य अकादेमी, नवी दिल्ली कानी सूं बरस 2010 रो बाल साहित्य
पुरस्कार “बुलबुल रा बोल” (बालकथावां) दमयंती जाडावत ‘चंचल’ नै मिलणो एक
सुभ संकेत है । म्हारो मानणो है कै इण सूं प्रेरणा मिलैला अर बाल साहित्य
रा जूना लेखकां मांय चेतना जागैला, सागै ई सागै केई नुवां रचनाकार ई आपरी
नुवीं ऊरमा लियां बाल साहित्य सिरजण मांय सामीं आवैला । दमयंती जाडावत री
बालकथा “टूटू”री बात करां जिण मांय सूवटौ अर सूवटी रो मानवीयकरण नुंवी दीठ
सूं लेखिका करियो है । जंगळ रा सगळा सूवटां री गोठ मांय नुंवी बात पाइनेपल
री आइसक्रीम अर टूटू रै मारफत टाबरां नै सीख दी है ।“म्याऊं” बालकथा मांय
कम सबदां मांय घणी चतराई सूं शीला नै बाहुदर अर हिम्मत वाळी बेटी बणण री
सीख मिलै ।
कैयो जावै कै बाल साहित्य पेटै साक्षारता अर उत्तर साक्षरता आंदोलन रै
मारफत ई घणी तेजी सूं काम हुयो है । पूरै राजस्थान मांय जिलावार केई केई
लेखकां री पोथ्यां प्रकाशकां छापी तो खुद लेखक ई आपरी पोथ्यां छापी । इण
काम मांय जिती तेजी आई पाछी उत्ती ई पाछी मंदी बेगी ई आयगी । तद आपां आ
मान सकां कै ओ सगळो काम आपरै हिसाब सूं हुयो अर इण सजावटी काम री फगत सोभा ई
बखाणी जाय सकै, असल मांय ओ काम बाल साहित्य रै खातै हुयो ई कोनी । आज
जरूरत है कै अनुवाद रै मारफत बाल साहित्य री सिरै पोथ्यां राजस्थानी मांय
आवै । अनुवाद रै सागै सागै मौलिक बाल साहित्य सिरजण मांय जुगबोध नै परोटतां
थकां आज रै बगतावू रंगां नै पोखण वाळो सिरजण बाल साहित्यकार करैला तद ई
आपां इस दिस विगतवार बात कर सकालां ।
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नीरज दइया
(भाई श्री रवि पुरोहित खातर / दिसम्बर, 2010)
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