आसै-पासै रो संसार सांवठै रूप मांय / नीरज दइया

आभै रै लूमतै बादळ सूं / छुड़ाय हाथ,
मुळकती-ढुळकती / बा नान्ही-सी छांट!
छोड़ देह रो खोळ / सैह’परी बिछोह…!
गळगी-हेत में / रळगी-रेत में।
आखर-आखर जुड़’र सबद बणै अर सबद-सबद सावळ भेळा होयां कोई ओळी रचीजै। सबदां रो ओ भाईपो किणी ओळी नै कदैई गद्य तो कदैई पद्य री ओळख सूंपै। आज विधावां री सींवां घणी नजीक आयगी है। आं मांयलो झीणो भेद समझण खातर अेक दीठ री दरकार होया करै। कोई ओळी कविता कद बणै अर उण ओळी रै जोड़ में किसी ओळी राखीज सकै, आ समझ इण संग्रै री केई कवितावां मांय देखी जाय सकै।
राजूराम बिजारणिया रो कवि मन आपरै आसै-पासै रै संसार मांय रमै। आपरै निजू जगत सूं जुड़ाव राखती आं कवितावां मांय जूण री अबखायां-अंवळायां सोरप-दोरप भेळै जिका रंग परोटीज्या है वै लांबै बगत तांई चेतै रैवैला। न्यारै न्यारै खंडां मांय राखीजी आं कवितावां रा केई सबळा चितराम नवी राजस्थानी कविता री ओप बधावैला। काळ रा सुर तो हरेक कवि उगेरै ई उगेरै, पण अठै गांव रै उजड़ण री जिकी पीड़ कविता रै मारफत राखीजी है वा काळजै ऊंडै उतरै।
“चाल भतूळिया रेत रमां” पोथी री कवितावां बांच’र लखावै कै कवि नै कविता रचण रो आंटो आयग्यो है। वो आपरै आसै-पासै रै संसार नै काव्य-विवेक रै पाण सांवठै रूप मांय आपां साम्हीं राखै। इण संग्रै री तीन खासियतां गिणा साकां- विसय री विविधता, भासा री समझ अर सांवठी बुणगट। युवा कवि राजूराम बिजारणिया नै कविता रै मारग लांबी जातरा सारू मंगळकामनावां।
-डॉ. नीरज दइया
(पोथी माथै फ्लेप-1)
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पोथी- चाल भतूळिया रेत रमां  (कविता संग्रै) राजूराम बिजारणियां
प्रकासक-बोधि प्रकाशन, जयपुर, संस्करण-2012, पाना-96, मोल-85/-
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