कविता रै उणियारै मांय बीकानेर जिलै री ओप / नीरज दइया

राजस्थानी साहित्य रा कीरत थंब लोक साहित्य रा लूंठा विद्वान मानीता नानूराम संस्कर्ता रै सिमरण मांय दियाळी रै दिनां राखीज्यै इण बीकानेर जिला सम्म्मेलन मांय कविता री बात उणां री ओळ्यां सूं ई उगेरूं- “माटी रै दिवलै तेल दियो मिनखां मन मेळ भरणो है / दिवळै री उजळी जोत अबै अंधारो दूर भगाणो है।”
कविता काल ही जिकी आज कोनी, अर आज जिकी है वा काल नीं रैवैला। बदळाव हरेक जुग री मांग होया करै। काल सूं आज री इण जातरा मांय कविता आपरो रूप-रंग बदळ लियो। आ जातरा अजेस चाल रैयी है। जिको उणियारो आज कविता रो आपां सामीं है उण री ओप मांय केई-केई कवियां री कलमां एक इतिहास रच्यो। आज री कविता रै फगत इण उणियारै माथै ई क्यूं बात करां, जद बात ही करणी है तो पूरी कविता रै डील-डौल बाबत बात करांला। पूरी कविता सूं म्हारो अरथाव कविता रै पूरै इतिहास सूं अंगै ई नीं है। कवि श्याम महर्षि अर मदनगोपाल लढ़ा री कवितावां सूं कीं ओळ्यां अठै राखूं-
दौड़ कविता मांय श्याम महर्षि लिखै-
ओढाळैडै़ कुंवाडां नै / खोल’र जोऊं / तो मन्नै दिखै / घणां-सारा लोग,
जका क्रांति री दौड़ मांय / हांफीज रैया….
मदनगोपाल लढ़ा री कविता रो अंस देखो-
सबदकोस दांई /कोनी म्हारी जूण / अकारादि क्रम में
खिंड्योड़ी-सी है / आंकी-बाकी / सबद आडी रै उनमान।
कविता रै उणियारै मांय बीकानेर जिलै री ओप बाबत की बात करा उण सूं पैली आं ओळ्यां रै मारफत एक मारग काढणो चावूं। बीकानेर जिलै री कविता रै कुंवाड़ां नै खोल’र जोऊं तो मन्नै घणां-सारा कवि हांफीजता निजर आवै। दूजी कविता रै मायनै रो खुलासो करूं तो जिण ढाळै सबदकोस का बीजी किणी विगत मांय जचावा-जचीवी करीजै बो क्रम आं हाफीजता कवियां रो कीं आंको-बांको निजर आवै तो इण नै म्हारी दीठ री कमजोरी मानता माफ करजो। बीकानेर री कविता किणी आडी रै उनमान है अर उण रो आरथाव सोधण सारू कीं जुगत करणी चावूं।
कविता री परंपरा मांय जावां तो बीकानेर रै इतिहास मांय बीकानेर रियासत तांई जावणो पड़ैला। ओ भटकाव होवैला, क्यूं कै मोटै बीकानेर मांय तो राजस्थानी रा घणा घणा कवि आय जावैला। भरत व्यास, कन्हैयालाल सेठिया, चंद्रसिंह बिरकाळी, मेधराज मुकुल, मणि मधुकर आद केई केई आपां री पांती मांय ऊभा दीसैला। आपां बीकानेर जिलै रो अरथाव आज रो बीकानेर माना। इण जिलै केई लूंठा कवियां रा ओळखीजता नांव है, जियां- कवि गंगाराम “पथिक”, भत्तमाल जोशी, गिरधारीसिंह पड़िहार, रामनाथ व्यास अर मनुज देपावत आद।
बीकानेर जिलै री कविता रै जिण उणियारै री ओळखाण म्हैं आप सामीं राखणी चावूं वो उणियारो केई कुंवाड़ां नै खोल्यां आंख्यां सामीं उधडै़ला। जियां आगूंच कैयो कै आ जातरा असल मांय खिंड्योड़ी-सी अर आंकी-बाकी निजर आवै। केई पुराणा कवियां बाबत पुखता अर विगतवार जाणकारी री अंवेर करणी पड़ैला। कविता रै इण उणियारै री ओळख सारू आपां कवि अन्नाराम सुदामा सूं लेय’र गंगासागर शर्मा तांई कीं बंतळ करां।
सगळा सूं पैली अर गीरबै री बात रो खुलासो करणो चावूं कै जे आपां सगळा राजस्थानी कवियां री गणती करांला तो बीकानेर जिलो भारी निजर आवैला। फगत गिणती री दीठ सूं नीं अठै निगर काम होयो है। अठै रै कवियां री गिणती दूजा जिला करता बेसी होवण रै कारणां माथै विचार करां। पैलो कारण-अकादमी बीकानेर मांय है। अकादमी का पत्र-पत्रिकावां साहित्यकारां नै सक्रिय जरूर करै, पण किणी खास हलकै मांय कवियां नै ऊभा कोनी कर सकै। अकादमी तो आखै राजस्थान खातर काम करै। फगत किणी खास हलकै का जिलै खातर काम करीज सकै, पण बीकानेर तो कवियां री दीठ सूं आगूंच रातो-मातो है। जे एकर मान ई लेवां कै आपां री अकादमी इण जिलै नै तूठी है अर अठै रै कवियां नै कीं बेसी ऊरमा सूंपी है। इण ढाळै री ऊरमा रै पाण कोई कद तांई ऊभो रैसी। कवि-लेखक छेकड़ खुद रै भरोसै ई ऊभा होया करै। अंत-पंत कवि का लेखक होवणो तो मिनख रै मांय सूं उपजै-जलमै। आज रै जुग मांय कोई आपरै आपै सूं कवि क्यूं होवै? म्हनै लखावै कै मिनख नै मिनख बणायो राखण खातर इण मसीनी जुग मांय अबै फगत ओ एक ई इलाज बच्यो है। मिनख मांयली संवेदनावां नै साहित्य पोखै।
कवि जिका खुद हांफीज रैया है वै कित्ता’क दिन चालसी। कविता रो नेम है कै उण मांय बगत बोलै, वा बगत मुजब चालै। पूंजीवाद माथै चोट करती कवि रामदेव आचार्य री कविता ओळ्यां साखी मांय देखो-
जिण पियो खून इण माटी रो / बै माटी में मिल जावैला
जिण लूंटी धरती माता नै / बै धरती में घस जावैला
कवि रो काम होवै कै वै लूंट-खसोट नै उजागर करै, बगत मुजब जगता नै जगवण रो काम कविता करियो। कवि मनुज देपावत- “रे धोरा आळा देस जाग” मांय लिख्यो-
ऐ धनवाळा थारी काया रा / भक्षक बणता जावै है
रे जाग खेत रा रखवाळा / आ बाड़ खेत ने खावै है
आजादी मिल्यां पछै ओ खेत तो हरेक आदमी रो होयग्यो पण आदमी आदमी बिचाळै संपत निवड़ती निजर आवण लागी इण खातर कवि मोहम्मद सद्दीक नै लिखणो पड़ियो –
आदम्यां रै आदमी झरूंटिया भरै / चूंट लेवै चामड़ी चरूंटिया भरै
खींच लेवै खालड़ी भरूंटिया भरै / महारै म्हारा आदमी झरूंटिया भरै
विचार करां कै अंत-पंत कविता है कांई? पैली कवि राजावां रै राज मांय वां रा गुण बखाणता, अर अबै कैयो जावै कै जनता रो राज है सो वो जनता रा गुण बखाणै। गुण रो अरथाव फगत किणी री बिड़द बांचण सूं नीं होया करै। कवि सांवर दइया री ऐ ओळ्यां देखो-
जरूरत है इत्ती-सी बात जाणण री / आ दुनिया है बाजार / अर हवा रा हुवै रंग हजार!
कविता रा आं हजार रंग नै गिणती मांय कुण साध सकै, अर कविता मांय हजार रो अरथाव फगत हजार कोनी होवै। कवि हरीश भादाणी री आं ओळ्यां रै मारफत जाण सकां कै सबद मांय अरथ रो अर अरथ मांय सबद रो बाथेड़ो कांई होवै-
खायली आंधी पीयली लुआं / पूछलै मूंडै लाग्योड़ी झूंठ
रगड़ हाथळियां /झाड़लै चैरै चैंटीज्या काळा-पीळा लेवड़ा
थारो-म्हारो नित-नेम / आव, भळै बाथेड़ा करां !
कवि अन्नाराम सुदाम अर यादवेंद्र शर्मा “चंद्र” री ओळखाण गद्यकार रूप करीजै। कांई कारण रैया होवैला कै कवि सुदामा अर चंद्र राजस्थानी कविता रै उणियारै मांय साफ साफ कोनी दीसै। आज ऐ नांव कथा-साहित्य मांय जिता जरूरी लखावै उता जरूरी कविता मांय क्यूं नीं मानीजै। इणी गत मांय केई ठावा ठावा नांव जोड़ सकां। जियां- डॉ. मनोहर शर्मा, नानूराम संस्कर्ता, भीम पांडिया, धंनजय वर्मा, शिव बीकानेरी आद बाबत बात करां कै आधुनिक कविता पेटै आं री बात क्यूं नीं होवै? अठै आं कवियां रो अवदान नकारण रो भाव कोनी। पण कांई कारण है कै प्रकृति काव्य री विगत मांय कळायण अवस आवै पण एक कवि रै रूप मांय संस्कर्ता नै बिसराया दियाजावै। बिसरावणो इण अरथ मांय कै कविता-जातरा री चरचा मांय आं कवियां री चरचा कोनी करीजै। जद कै हरीश भादाणी अर मोहम्मद सद्दीक नै गीतकार रूप नै कविता-जातरा सदीव याद राखै।
मंच अर कविता रो आपरो एक मेळ रैयो है अर रैवैला। आज जद मंच माथै नवी कविता पिछड़ जावै तो गीत-गजल लिखणियां कवियां बिचाळै आमीं-सामीं एक चरचा चालै। मंच रै बदळण साथै खुद री कविता नै बदळ परा नवा रंग भरणिया कवियां मांय कवि भवानीशंकर व्यास ‘विनोद’, शिवराज छंगाणी, लक्ष्मीनारायण रंगा री कविता देख सकां। मंच अर नवी कविता दोनां रा मोरचा माथै आं कवियां मुकबलो करियो। आज री कविता आं कवियां सामीं जवान होयी। अठै मंच अर नवी कविता बिचाळै कोई बहस मकसद कोनी, पण आ जरूर है कै दोनां री आप आपरी ठौड़ है।
“रोटीनाम सत है” का “थे मजा करो महाराज” जिण किणी दौर री कवितावां रैयी होवैला पण कविता-जातरा रै इतिहास मांय सदीव अमर रैसी। कविता रा जूना रसिया “पिरोळ में कुत्ती ब्यायी” नै आज ई याद करै। आजादी आयां /ना थूं पागरी /ना म्हैं पांगरियो/ थूं होयगी फोफळियो/ म्हैं होयग्यो सांगरी जैड़ी कवितावां मांय जिको सामाजिक सांच अर लोक जीवण रो जथारथ है। ओ लोक भासा मांय प्रगट जथारथ उण नै जीवतो राखै। कान महर्षि, लालचंद भावुक अर सरल विशारद आद केई कवि इण जातरा मांय साथै हा, पण कवि रूप आज री कविता मांय याद कोनी करीजै।
जरूरी है कै कोई कवि आपरै जीवण मांय सदीव आज रो कवि बण्यो रैवै। किणी परंपरा मांय ऐब कोनी होवै। आपां नै फगत इतो जाण लेवणो है कै परंपरा बगत परवाण बदळ जाया करै। कविता री इण जातरा मांय केई दौर अर विचारधारावां रा उणियारा बदळिया। संपादक अर कार्यक्रम-आयोजक रूप कवि श्याम महर्षि कविता रा केई केई रंग देख्या है। अठै आ साख इण खातर जरूरी है कै श्रीडूंगरगढ़ सूं केई केई कवियां रो मारग जुड़ियोड़ो है। आज बीकानेर रै साहित्य बाबत बात करता लखावै कै श्रीडूंगरगढ़ स्कूल रा केई केई रचनाकारां साहित्य री सिलसिलैवार समझ राखै। आ समझ मांय सूं उपजै, पण इण खातर केई बीज अर खाद ई जरूरी होवै। पुरस्कार अर सम्मान ई लेखन री प्रेरणा खातर जरूरी होवै। ठीक बगत मांय जे किणी रचना रो समाज सम्मान नीं करै तो रचनाकार नै थाकेलो बेगो आवै अर वो होळो पड़ जावै। साहित्यिक संस्थावां रै आयोजना सूं कोई काम होवै का नीं होवै पण रचनाकारां बिच्चै मेळ-मुलाकात सूं कीं आपसरी मांय समझ बणै अर समझ बधै।
बीकानेर रा कवियां खातर “हांफीज रैया है” ओळी गळत कोनी। कवि सूर्यशंकर पारीक, ओंकार श्री, बुलाकी दास “बाबरा”, माणक तिवाड़ी “बंधु”, देवकिशन राजपुरोहित, कल्याण गौतम, ए.वी. कलम, रामजीवण सारस्वत, भंवर व्यास, कन्हैयालाल भाटी आद नांव दाखलै रूप नांव लिया जाय सकै। इण बात नै आपां इण ढाळै ई अरथा सकां कै कविता रै मारग ठाह कोनी पड़ै कै कद, कणा अर कित्ता गीत किण कवि रा गाया जावैला। कवि नै बीकानेर जिलै री का किणी बीजी सींव मांय बांधणो ठीक होवै। काम-धंधै अर चाकरी रै रैवता ई पासा पोर होया करै। बीकानेर रा कवि बीकानेर सूं बारै गया परा, अर केई कवि बारै रा कठैई आय’र का जाय’र बस जावै तद भूगोल बदळ जाया करै। इणी खातर इण अंवेर नै खिंड्योड़ी-सी अर आंकी-बाकी कैयो।
कविता सारू कैयो जावै कै उण री कोई सींव कोनी होवै। म्हारो मानणो है कै कवि तो वो ई होवै जिको सींव मांय बंधै कोनी। किणी पण जेवड़ै सूं बांधणो तो बेजा बात है। कवि तो एक सींव सूं दूजी अर दूजी सूं तीजी अर केई बार परबारो होवै अर नवी सींव पूगै। कवि होवण रो अरथाव किणी जिलै खातर कविता लिखणो कदैई कोनी रैयो, वो तो आखै जगत सारू रचै। रचना रचाव पछै आखै जगत री होय जावै।
राजस्थानी भाषा साहित्य अर संस्कृति अकादमी, साहित्य अकादमी अर नेशनल बुक ट्रस्ट इंडिया आद रै करायोड़ा संपादित राजस्थानी कबिता संकलन देख्या ठाह लागै कै जिलावार बीकानेर रै कवियां री खासी भागीदारी मान सकां। इण साथै ओ पण कैवणो पड़ैला कै संपादकां री निजू निजर रै कारण आं मांय केई कवि छूटग्या। इणी बरस २०१२ मांय सामीं आयै नंद भारद्वाज रै संपादित संकलन “जातरा अर पड़ाव” रै ३३ कवियां मांय ७ कवि बीकानेर सूं है, मतलब २१% भागीदारी। इणी ढाळै संपादक अर्जुनदेव चारण रै संपादित संकलन “साख भरै सबद” रै मांय १०% बीकानेर रा कवि सामिल होया। संपादक पारस अरोड़ा संपादित संकलन “अंवेर” रै ३३ कवियां मांय शिवराज छंगाणी, श्याम महर्षि अर सांवर दइया कवि बीकानेर रा देख सकां। “अंवेर” रै प्रकाशन रै बगत श्रीडूंगरगढ़ चूरू जिलै मांय हो। तो कांई पारस अरोड़ा री निजर मांय शिवराज छंगाणी अर सांवर दइया ढाळ कोई कवि अठै रो कोनी। जाणा आ बात कोनी। सार रूप आपां स्वीकार कर सकां कै किणी संपादन मांय शामिल होवणो नीं होवणो कवि होवण रो प्रमाण कोनी। पण सोचण री बात तो है कै आं संपादित पोथ्यां मांय इत्ता कवि अठै रा होवतां उपरांत ई सामिल क्यूं कोनी होया।
इणी ढाळै आपां पुरस्कारां री दीठ सूं ई जे कोई विगत सामीं राखां तो जिकै मुकाम पूगाला वो सगळा खातर मान्य कोनी होवैला। पुरस्कार मिलणो नीं मिलणो जोग-संजोग रै हाथां, कवि रै हाथ मांय फगत कलम होवै। कविता बाबत सोचणो-विचारणो जरूरी है। हरेक कवि नै आ जाणकारी राखणी जरूरी मान सकां कै आज री कविता किण मुकाम माथै पूगी। इण बाबत जाणकारी होयां उण मांय पारखी दीठ जलमै। हरेक कवि खुद आपरो पैलो आलोचक होवै।
म्हारी खुद री कविता जातरा मांय म्हैं नवी कविता सामीं दौड़ता कवियां नै हांफीजता देख्या है। किणी चावै-ठावै मानीजतै कवि रा बोल हा कै नवी कविता कोई कविता ई कोनी होवै। नवा कवि जिका दावै जियां ओळियां लिखै वै कवितावां ई कोनी, कविता छंद बिना होवै ई कोनी। बरसां पछै म्हारो जबाब अनुवाद पोथी “सबदनाद” है। जिण मांय भारतीय भाषावां रै कवियां री कवितावां री बानगी देखी जाय सकै। कविता रा जातरी जे देस विदेस री कविता नीं जाणैला तो कुण जाणैला। बीकानेर जिलै मांय कवितावां रै अनुवाद सीगै ई खासो काम होयो है।
कैवणिया आ तकात कैवै कै हरीश भादाणी सूं मोटो कवि ना कोई होयो अर ना होवैला। जनवादी सोच अर संवेदना रा लूंठा गीतकार-कवि हरीश भादाणी री पोथ्यां “बाथां में भूगोळ” अर “जिण हाथां आ रेत रचीजै” का मोहम्मद सद्दीक री पोथ्यां “जूझती जूण” अर “अंतसतास” आं रै सुरीलै गीतां री करामात सूं पिछाण बणाई। हरेक सोच अर विचार रा लोग होवै अर राजस्थानी साहित्य अर बीकानेर मांय तो फगत कैवण माथै ई भरोसो बेसी होवै, आलोचना लिखण रो जोम कमती निजर आवै। कोई खोजी खोज काढ़ लावैला कै किरण नाहटा ई पैली कवितावां लिखी तो इण सूं कविता पेटै एक जाणकारी ई बधैला।
बीजा चावा ठावा कवियां बाबत बात करां। कवि भवानी शंकर व्यास “विनोद” री कवितावां मांय हास्य व्यंग्य री तीखी धार बरसां रैयी। बरसां पछै “मोती मांयली पीड़” मांय रोजीना रै जीवण साम्हीं आवता केई-केई सांच, मिनख मांयला सुख-दुख, आस अर विस्वास लाधै। कवि सांवर दइया री केई केई कविता पोथ्यां रै प्रकाशित होया पछै ई वै कहाणीकार अर व्यंग्यकार री छिब मांय बेसी मानीजै। कविता री बात करां तो बुद्धु बक्सै माथै लिखी कवितावां, हाइकू अर पंचलड़ी कवितावां खातर सांवर दइया उल्लेखजोग मानीजै। कविता लेखन मांय कोई कवि पुरस्कार लेय’र लगोलग सक्रिय कवि रूप ओळ्खीजै, जियां कवि वासु आचार्य रा च्यार कविता संकलन देख सकां- सरणाटो, सीर रो घर, सूको ताळ, खटारा साइकिल रै सायरै अर कोई कवि जियां मालचंद तिवाड़ी फगत “उतरियो है आभो” पछै लखावै जाणै कविता सूं हाथ कसठो कर लियो।
रूप कोनी जाणीजै। हाइकू परंपरा मांय लक्ष्णीनारायण रंगा री पूरी पोथी सामीं आवण सूं जद-कद हाइकू री बात होवैला तो रंगा जी रो काम गिणावणजोग मानीजैला। नान्ही कवितावां पेटै ओंकार श्री “राजस्थानी एक” सूं जाणीजै अर नान्ही कवितावां नै केई केई नवा नांव देय’र कवियां कवितावां लिखी। लक्ष्मीनारायण रंगा री पोथी “सावण-फागण” प्रयोगां री दीठ सूं अठै याद करी जाय सकै। कवि शिवराज छंगाणी रै कविता संग्रै “ऊजळा आखर” रै बरसां पछै “ले संभाळ थारो कविकरम” पोथी देख’र कैयो जाय सकै कै आप री कविता मांय बगत मुजब बदळाव रा ऐनाण मौजूद है।
कवि सरदार अली, देवदास राकांवत, शंकरलाल सोनी, मधुकर सोनी अर राधेश्याम जोशी री कविता रंगत मांय केई कवियां रा नांव गिणाया जाय सकै जिका परंपरागत कविता नै पोखता थका कविता मांय संगीत अर लय-विधान नै घणो जरूरी मानै। कवि बाबूलाल शर्मा, श्रीकृष्ण बिशनोई अर रामजीलाल घोड़ेला कवि रूप राजस्थानी जन-जीवण अर उण रै रूप विधान माथै लिखता आपरी बात राखता रैया है। रवि पुरोहित रै कविता संग्रै “हासियो तोड़ता सबद” अर “चमगूंगो” मांय जुग रै साथै बदळती भाषा अर सोच रो नवो सुर देख्यो जाय सकै। रामनरेश सोनी, प्रमोद कुमार शर्मा, कमल रंगा, नवनीत पाण्डे अर मोहन थानवी आधुनिक जीवण री अबखायां, बदळतै समय अर समाज रा चितराम आपरी दीठ सूं कविता रै आंगणै उतारै, तो कैय सकां कै त्रिलोक शर्मा, चेतन स्वामी, सत्यदीप अर मदन सैनी ई कवितावां मांय बेरंग होवतै जीवण रो जथारथ आपां सामीं राखै।
असल मांय कविता री दसा अर दिसा री जाणकारी ई सिरजण रो आधार होवै। किणी पण कवि नै आगूंच आ जाणकारी जरूरी होवै कै वै जिण परंपरा मांय कलम उठा रैया है उण री विगत कांई है। घणो जरूरी है कै बीकानेर रा कवि जाणै कै अठै सूं बारै कविता में कठै कांई हो रैयो है। जे भारतीय कविता रो कोई एकठ सुर है तो उण नै बिना जाण्या-समझ्या बिना, कविता कियां लिखीज सकै। सगळा सूं मोटी बात आ ई है कै अठै रा कवि कविता तो रच रैया है पण एकठ कविता री राग नै समझ नीं रैया है। आज छंद अर वयण सगाई नै छोड़’र बाजारवाद अर वैश्विकरण माथै कीं सोचण, समझणो अर रचणो जरूरी लखावै।
कविता बाबत कैयो जावै- चाणचक कोई आवै, लिख जावै…. इण लिख जावण नै अरथावणो जरूरी है। देखा-देखी या बायदै लिख्यां बात कोनी बणै, खुद रै आसै-पासै री जूण रो जथारथ कविता मांय रचणो महतावूं मानीजै। बीकानेर रै साहित्य जगत मांय एक बगत हो जद युवा लेखकां मांय नीरजद दइया, शंकरसिंह राजपुरोहित अर गिरधरदान रतनू पछै पिरोळ बंद लखावती अर आज आ बाड़ी हरी-भरी आप सामीं है। युवा कवियां मांय राजेश कुमार व्यास, हरीश बी. शर्मा, संतोष मायामोहन, मदन गोपाल लढ़ा, गजादान चारण, मोनिका गौड़, सुनील गज्जाणी, संजय आचार्य “वरुण”, राजूराम बिजारणिया, हरिशंकर आचार्य, संजय पुरोहित, कमल किशोर पिंपळवा, रचना शेखावत, रमेश भोजक “समीर”, गंगासागर शर्मा आद केई नांवां सूं पतियारो होवै कै आ बाड़ी सदीव हरी रैसी।
टूकै मांय कैयो जाय सकै कै कविता रै उणियारै मांय बीकानेर जिलै री ओप खातर भवानीशंकर व्यास विनोद, शिवराज छंगाणी अर लक्ष्मीनारायण रंगा रा टाबर ई कविता कोनी लिखै वां टाबरां रा टाबर ई कविता री पोसाळ मांय दाखलो लेय लियो है। म्हारो मतलब तीन पीढ़ियां सूं है। हरख री बात है कै तीसरी पीढ़ी रा डॉ. लढा़, राजूराम पछै चौथी पीढी़ कवि गंगासागर शर्मा ई आपरी कवितावां रै पाण इण मारग आया है। जुग-जथारथ नै दरसावती आज री कवितावां मांय बगत रा केई केई सुर है, जरूरत है आं नै एकठ ओळखण री। उम्मीद करी जाय सकै कै काल जद हांफीजता कवि संभळैला। आं कवियां नै अकारादि क्रम का किणी बीजी दीठ सूं साहित्य समाज देखैला-परखैला। इणी आस अर विस्वास रै साथै दियाळी री मंगळकामनावां भीम पांडिया री ओळियां सूं देवणो चावूं- माटी रै दिवलै सूं कोनी पार पड़ै / हिवड़ै मांयलो हरख-दीप संजोय रे / धरती रै कण-कण में अखत उजास कर / घणै मान सूं प्रेम बीज नै बोय रे….। जय राजस्थानी।
नीरज दइया

लूणकरणसर : 10-11-2012

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